(दिलचस्प बात यह है कि 1945 में पत्नी पिराए के लिए लिखी इस कविता को कुछ लोग नाज़िम के लिए लिखी पिराए की कविता भी मानते हैं।)
मेरी दिली ख़्वाहिश है
कि तुम से पहले मेरी मौत आए ।
क्या तुम मानती हो कि 
जो बाद में आएगा 
वह पहले वाले का पता ठिकाना ढूँढ़ लेगा ?
वैसे मेरा इसपर कोई यक़ीन नहीं ।
ऐसा करना कि मरूँ तो
मुझे दफ़नाना नहीं,जला देना 
और अपने कमरे के चूल्हे के ऊपर
काँच के एक ज़ार के अन्दर 
मेरी राख बन्द करके रखना 
ध्यान रखना  
शीशे के पार से दिखाई देता रहे अन्दर 
जिससे पल पल निहारती रहो मुझे ।
समझ सकती हो मेरा समर्पण 
मैंने चाहा नहीं कि मिट्टी बन जाऊँ 
न यह कि फूल बन
तुम्हारे आसपास गुलजार किए रहूँ
मैं तो, बस, यह चाहता हूँ 
कि ख़ाक बन जाऊँ 
और 
हमेशा-हमेशा के लिए 
तुम्हारे इर्द-गिर्द बना रहूँ ।
बाद में जब तुम्हारी गति भी मेरी जैसी हो जाए 
तो तुम मेरे ज़ार के अन्दर समा जाओ 
और हम पहले जैसे
फिर से साथ-साथ रहने लगें ।
कभी ऐसा हो सकता है 
 कि फूहड़ स्वभाव की बहू 
या उद्दण्ड नाती-पोता 
साफ़-सफ़ाई के धुन में 
ज़ार के अन्दर से हमें निकालकर 
बाहर घूरे पर फेंक दें...
कोई बात नहीं 
तब तक हम
एक दूसरे के साथ इतने घुल-मिल चुके होंगे 
कि जहाँ गिरेंगे, वहाँ भी 
एक दूसरे से दूर नहीं
अगल-बगल ही गिरेंगे । 
धरती हमें अपने आगोश में समो लेगी ।
कल, जब वहाँ नमी होगी
कोई जंगली झाड़ उगेगा  
तो एक दिन 
हम उससे जोड़ा-फूल बन कर प्रकट होंगे
एक तुम 
दूजा मैं ।
मेरे तसव्वुर में दूर-दूर तक 
मौत का ख़याल नहीं आता
अभी मुझे एक बच्चे को और जन्म देना है 
मेरे अन्दर ज़िन्दगी दहाड़ें मार रही है
ज़िन्दगी मुझमें लबालब भरी हुई है ।
अभी मुझे ज़िन्दा रहना है 
और बहुत बहुत दिनों तक ज़िन्दा रहना है 
पर अकेले बिल्कुल नहीं 
तुम्हें रहना होगा आसपास 
तुम्हें रहना होगा साथ-साथ ।
मुझे मौत, भला, क्या डराएगी
मुझे दफ़ना दिए जाने की रस्म बड़ी उबाऊ लगती है
जब तक मेरी मौत आएगी
तब तक कुछ और बेहतर रास्ता निकल आए शायद
"तुम्हारे जेल से जल्दी बाहर आने की उम्मीद है?"
मेरे अन्दर कुछ घुमड़ता है :
हो सकता है, प्रिय !
जो तुम कह रही हो....
(Hülya N. Yılmaz के तुर्की भाषा से अंग्रेज़ी में किए गए अनुवाद पर आधारित)
अँग्रेज़ी से अनुवाद —  यादवेन्द्र