भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुमसे सदा लिया ही मैंने / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
तुमसे सदा लिया ही मैंने, लेती-लेती थकी नहीं।
अमित प्रेम-सौभाग्य मिला, पर मैं कुछ भी दे सकी नहीं॥
मेरी त्रुटि, मेरे दोषों को तुमने देखा नहीं कभी।
दिया सदा, देते न थके तुम, दे डाला निज प्यार सभी॥
तब भी कहते-’दे न सका मैं तुमको कुछ भी, हे प्यारी!
तुम-सी शील-गुणवती तुम ही, मैं तुमपर हूँ बलिहारी’॥
क्या मैं कहूँ प्राण-प्रियतम से, देख लजाती अपनी ओर।
मेरी हर करनी में ही तुम प्रेम देखते नन्दकिशोर!॥