तुमसे ही मैं रोशन / सरोज मिश्र
तुमसे ही मैं रौशन अब तक,
तुमसे ही सब झिलमिल है।
तुम कहते हो भूलूं तुमको,
मै कहता हूँ मुश्किल है।
शर्ट की उधड़ी देख सिलाई तुमने उस दिन टोंका था,
जाओ पहले शर्ट बदल लो कह कर मुझको रोका था।
सबकी नज़र बचाकर तुमने फ्रिज में खीर छिपाई थी।
अगले दिन कालेज में हमने दो-दो चम्मच खाई थी।
जो बीता है ज़ेहन में अबतक
खुश्बू बनकर शामिल है।
तुम कहते हो भूलूं तुमको,
में कहता हूँ मुश्किल है।
शाम ए अवध वह ढली की ऐसे भोर बनारस तक आई,
गंगा तट पर हमने तुमने एक क़सम थी दोहराई।
तोड़ सकूं वह क़सम तुम्हारी मुझको ये अभ्यास नही,
जब तक बजे साँस की वंशी ले सकता संन्यास नही।
रह लूंगा मैं उतने में ही,
जितना हिस्सा हासिल है।
तुम कहते हो भूलूं तुमको,
में कहता हूँ मुश्किल है।
मुझे छोड जब चढ़े ट्रेन में पाँव तुम्हारे काँप गये।
पहुँचे जब तक सीट पर अपनी धरती अम्बर नाप गये।
मुझे सहज करने के खातिर, आ खिड़की पर बहलाना,
भीतर से रोने बाले ओ तेरा मुझको जीभ चिढाना।
तुम तो थे निर्दोष भावना
नियति किन्तु पत्थर दिल है।
लाख कहो तुम भूलूं तुमको
यही कहूँगा हूँ मुश्किल है।
तुम कहती हो भूलूं तुमको मैं कहता हूँ मुश्किल है