तुम्हारा कोट / रजनी अनुरागी
तुम्हारे कोट को छुआ तो यूँ लगा
कि जैसे तुम हो उसके भीतर
उसके रोम-रोम में समाये
तुम्हारी ही गंध व्यापी थी उसमें
जो उसे छूते ही समा गई मुझमें
यूँ लगा कि जैसे तुमने छुआ हो मुझे
अचानक कहीं से आकर
मैं तो समझी थी
कि तुम भूल गए हो मुझको
दिखा जब अंदर की जेब में लगा हरा पेन
एक मीठा सा अहसास हुआ
ये वही हरा पेन था
जो लिया था तुमने पहले मुझसे कभी
मगर अब वो पेन महज़ पेन नहीं रहा
वहाँ उग आया था एक हरा पत्ता
जो सीधे तुम्हारे दिल से जाके जुड़ता था
और तुम्हारा दिल अभी भी मुझसे जुड़ा है
मै अब भी हरे पत्ते-सी हरियाती हूँ
तुम्हारे मन में
ये जानकर अच्छा लगा
ये जानकर अच्छा लगा
कि तुमने लगा के रखा है
मुझको अभी भी सीने से
मैं अब भी वहाँ बसती हूँ
सघन हो गया प्रेम
आँख से आँसू बह निकले
तुमने सोख लिया फिर से मेरा दुख
सारा विषाद बह गया
रह गया तुम्हारा-मेरा प्रेम
हरे पत्ते सा तुम्हारे कोट में