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तुम्हारा चेहरा / विशाल समर्पित

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तुमसे प्रेम करता था मैं
तुमसे मोहब्बत थी मुझे
इसलिए मैं निहारता रहता था
बिना पलक झपकाये
निरंतर तुम्हारा चेहरा।

हाँ ! केवल और केवल इसी लिए
अन्यथा यदि कोई और विचार
मेरे मस्तिष्क मे होता
या मेरी दृष्टि मे
कोई और भावना
निहित होती तुम्हारे लिए
या सीधे सीधे यूँ कहें
मेरी दृष्टि में काम का
लेशमात्र भाग भी होता
तो मैं तुम्हारा चेहरा नहीं
घूरता तुम्हारा वक्ष
तुम्हारी देह का
वह प्रत्येक अंग
जो कामुकता से ओतप्रोत था
नही बच पाता मेरी दृष्टि से।
किंतु मेरी दृष्टि
प्रेम की परिध्वंसक नहीं है।

मेरी दृष्टि तो नदी का वह किनारा है
जो सदैव दूसरे किनारे पर
तुम्हे स्थित देखती है
जो सदैव नीले नभ में
तैरते मेघों में तुम्हे ढूँढती है
दिन भर के
सारे उबाऊ कामों के पश्चात
मेरी दृष्टि खोजती है तुम्हे
रात के सन्नाटे में
ठीक उस तरह,
जिस तरह हिरन
खोजता है कस्तूरी
मृत्यु की दहलीज पर
खड़ी देह खोजती है साँसे
जिस तरह एक संन्यासी
खोजता है सत्य।

और तुम कहती हो
मेरी दृष्टि वासनामय है
नहीं नहीं !
यह मेरे प्रेम का
दुखमय समय है।