तुम्हारा चेहरा / स्वदेश भारती
तुम्हारा चेहरा आँखों के आईने में
जब भी झलकता है
अतीत मेरी आँखों के कलश से
बून्द-बून्द ढलकता है
ये बून्दें वर्षा की बून्दों जैसी नहीं होती
कि बरसी और
ताल-तलैया नदी-दुकूल बाढ़ बन गए
या नगर की सड़कों पर पानी भर गया
ट्राफ़िक जाम में
सड़कों के रास्ते ही बदल गए
ये बून्दें उस वर्षा की बून्दों की तरह नहीं
जिसमें किसान प्रसन्न होता है
और मछुआरा अपना जाल लेकर
नदी की ओर चल पड़ता है
ये बून्दें उस वर्षा की बून्दों की तरह भी नहीं
जो सैलानी बादलों की आँखों से गिरती
धरती को हरीतिमा के आनन्द से
आत्म-विभोर कर जाती हैं
ये बून्दें अतीत की बून्दें हैं
स्मृतियों के कसकते घावों से निकलकर
आँखों की राह बरसती है
अन्तर की सूखी ज़मीन पर आहत
आस्था को अपनी ममत्व भरी बाँहों में बान्धकर
कहती हैं — स्मृतियाँ ही इतिहास
और भविष्य की धरोहर होती हैं ।
”’लीजिए, अब पढ़िए, इस कविता का अँग्रेज़ी अनुवाद”’
Swadesh Bharati
Your Face
Whenever you face reflects
In the mirror of my eyes
The past flows drop by drop incessantly
through them
But those are unlike the raindrops
Which when falling constantly
cause floods in the water bodies
pools and ponds, riverbanks and collected on
the city roads
If improperly drained, change there contours of ways
also they are unlike the ones
which please the cultivators and farmers
to stir up a fisherman enough sailing for the river
armed with his nets and angles to cast in the waters
In the hope of getting bountiful catches
They aren't the ones which raining from
the wandering clouds eyes make the earth
so happy with the greenery all around
That she forgets the self in absolute profundity of bliss
These are the drops from the past coming out
of the painful wounds through the paths of eyes
on the dry land of ones inner self
fastening it within their arms saying —
memories are the trust value of history
and future treasure deposits.