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तुम्हारी परिभाषा / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
उजला चेहरा दिखता है जैसे ही
अंधेरे की तरह का काफ़ूर हो जाती हैं और बातें
सोचता हूँ इतनी शांत है तुम्हारी हर प्रस्तुति
गरिमा इस तरह बैठी है
जैसे चट्टान पर हो कोई हंस
बोलना बहुत सोच समझकर
और हंसना जैसे प्रकृति ही मना रही हो कोई उत्सव
सोचने विचारने का अद्भुत सा संतुलन
वह कितना कठिन समय था और तुमने किया उसे सरल
आग्रहों को स्वीकार करना
बड़े लोगों की तरह
जैसे यह सब होता ही है यह सोचकर नज़रअंदाज करना गुस्ताखियां
बहुत मीठा प्यार करना
शुभकामना करते रहना बरहमेश
मेरे दिखाई ना देने पर
अंदर ही अंदर रहना बेचैन
ये तुम्हारी परिभाषा की कुछ बातें हैं
जो सिर्फ मेरे लिए मानीख़ेज हैं