भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी याद ने जब भी मुझे सदा दी है / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हारी याद ने जब भी मुझे सदा दी है
हर एक बार मैं थोड़ा-सा बिखर जाता हूँ
मेरी सफ़ेद सांसों ने मुझको समेट रखा है