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तुम्हारी याद / अर्चना अर्चन
Kavita Kosh से
ओढ़ लिया है
अपनी ज़िम्मेदारियों / मजबूरियों का लिहाफ
चारों ओर से
कसकर दबा भी लेती हूँ
कहीं कोई झिर्री नहीं /
सोना चाहती हूँ
पूरे सुकून के साथ
पर नींद नहीं आती
जरा करवट लेते ही
न जाने कैसे
छूट जाती है पकड़
ढीली पड़ जाती हैं
मेरी सारी कोशिशें
और मेरे लिहाफ में
घुस आती है
सुइयों जैसी चुभने वाली
सर्द हवा
तुम्हारी यादों की तरह।