तुम्हारी साँसों के नाम / पुष्पिता
वे ही हैं
जो जुते हैं ज़मीन में
मेरी भूख के विरुद्ध
वे ही हैं
जो डटे हैं मिल-कारखानों में
मेरी यातना के विरुद्ध
वे ही हैं
जो लगे हैं सड़कों और रेल पटरियों पर
सूर्य-ताप की पगड़ी बाँधे
हमारी यात्राओं के लिए
वे ही हैं
जो दे रहे हैं अपने हाथ
अपनी नींद
अपने सपने मशीनों में
हमारी हर सुविधा के लिए
वे ही हैं
जो रहते हैं
अपने जीवन का स्वर्ण सिक्का लगाए
कि कागजिया नोट के अभाव में
उन्हें नहीं मिलता
साँस बचाने के लिए शिक्षा
न सड़क पर रास्ता
न गाड़ी में सीट
न घर चलाने को नौकरी
न मरने पर कफ़न
वे ही हैं
जिन्हें मुँह होने पर भी
मुँह खोलने का अधिकार नहीं मिलता
वे ही हैं
जिनके बच्चे हमारे बच्चे पालते हैं
जिनकी औरतें हमारा घर चलाती हैं
जो हमें जीवन देते हैं
अपने जीवन की तलाश में
जैसे मेघ को चाहिए ज़मीन
ज़मीन को चाहिए बीज
बीज को चाहिए ॠतु
ॠतु को चाहिए प्रकृति
शब्द को चाहिए अर्थ
अर्थ को चाहिए जीवन
जीवन को चाहिए मनुष्य
मनुष्य को चाहिए सृष्टि प्रकृति
वे ही हैं
जो चुप रहते हैं
पर आँखों से बोलते हैं
उनके जुड़े हाथों के भीतर
हैं भेदों के सारे रहस्य
जिनकी रस्सी अगोचर है।