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तुम्हारे कोश में वक्तव्य तो सुनहरे हैं / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
तुम्हारे कोष में वक्तव्य तो सुनहरे हैं
सही सवाल की अभिव्यक्तियों पे पहरे है
विकास फ़ाइलों के आँकड़ों में बन्धक है
चले थे लोग जहाँ से वहीं पे ठहरे हैं
किधर बढ़ाएँ हम अगला क़दम नहीं मालूम
मशाल गुम है अँधेरे बहुत ही गहरे है
ये लोग संविधान ख़ाक़ अपना बाँचेंगे
अभी तो ठीक से सीखे नहीं ककहरे हैं
लुटेरे शोर मचाते घुसे हैं गाँवों में
हमारे गाँव के रक्षक नितान्त बहरे हैं