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तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है / बहज़ाद लखनवी

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तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है
मुक़द्दर बनाने को जी चाहता है

जो तुम आओ तो साथ ख़ुशियाँ भी आयें
मेरा मुस्कुराने को जी चाहता है

तुम्हारी मुहब्बत में खोयी हुई हूँ
तुम्हें ये सुनाने को जी चाहता है

ये जी चाहता है कि तुम्हारी भी सुन लूँ
ख़ुद अपनी सुनाने को जी चाहता है