भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे वक्ष-कक्ष में / ज्ञानेन्द्रपति

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे वक्ष-कक्ष में

जो होती सुलह-वार्त्ताएँ

इजरायल-फ़िलिस्तीन की

भारत-पाकिस्तान की

इराक-अमरीका की

हठी सरकारों और उग्र पृथकतावादियों की

तुम्हारी छाती के अन्दर

है जो एक गोल मेज़, उसके चौगिर्द बैठ

जो वहाँ होती संधि-वार्त्ताएँ

ज़रूर सफल होतीं

झगड़े सलट जाते अदेर

कट्टर दुश्मन गहरे दोस्त बनकर ही उठते

शान्ति-वार्ताओं के लिए

जगह नहीं इस धरती पर कोई और

शुभाशा के वायुमंडल से भरे तुम्हारे वक्ष-कक्ष से बढ़ कर-

जानता नहीं कोई यह मुझ से ज़्यादा-

कि जिसकी चौखट पर

टिकाते ही अशांत माथा

नींद में निर्भार होने लगती है देह

एक शिशु हथेली मन की स्लेट से पोंछने लगती है आग के आखर