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तुम्हारे साथ / रंजना जायसवाल

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मैं होना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
जैसे नीम जंगल रास्तों में जुगनू
रेत की दुनिया में होते हैं
जलद्वीप
गुलमोहर
मैं होना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
जैसे सृजन में होती है पीड़ा
सिक्कों में होती है खनक
और संवाद में होती है सभ्यता
संस्कृतियों की कोख में
घृणा के बीज सा
नहीं होना चाहती मैं
तुम्हारे साथ
तुम अपने समय की शहतीरों पर
टाँकते रहो सितारे
या अपनी गुलेलों से
छेंदते रहो आसमान
खोद सको एक नदी
काट सको पहाड़ कोई
भले ही मेरे बगैर
मैं होना चाहती हूँ
तुम्हारे लिए जैसे
शीत के लिए होती है आँच
जीत के लिए होता है नशा
जैसे धरती के लिए हुआ था
कोई कोलंबस
मैं नही होना चाहती
गुलेल सी करुण
तुम्हारी चोट खाई मांसपेशियों के लिए
तुम मेरे बिना
मुझसे दूर भी रह सकते हो
अडिग
अपने बनाये रस्ते पर खा सकते हो ठोकरें
जी सकते हो दुःख
मैं होना चाहती हूँ तुम्हारे बिलकुल साथ
जैसे समय से घिर जाने पर
साथ होती हैं स्मृतियाँ
मस्तियों में होती है थिरक
होती है थाप
बुखार में बिलकुल सिरहाने होती है माँ
तुम्हारी कमजोरी को
अपनी सभ्यता का सबसे बड़ा मूल्य
बताने वाले बलिष्ठ स्वर सा
नहीं होना चाहती मैं तुम्हारे साथ