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तुम्हीं तलाशो तुम्हें तलाश-ए-सहर होगी / राजेश चड्ढा
Kavita Kosh से
तुम्हीं तलाशो तुम्हें तलाश-ए-सहर होगी,
हमको मालूम है सहर किसे मयस्सर होगी।
पाग़ल हो हाथ उठाए हो दुआ माँग रहे हो,
पिघला ख़ुदा का दिल तो बारिश-ए-ज़हर होगी।
चाँदनी की आस में आँखें गँवाए बैठे हो,
चाँद जलाके रख देगी अगर हमारी नज़र होगी।
छोड़ो हमारा साथ हम इम्तिहान की तरह हैं,
नतीजे वाली बात हुक्मरान के घर होगी।
अपनी तो ज़िंदगी की रफ़्तार ही कुछ ऐसी है,
जीने को यहाँ जिए हैं उम्र अगले शहर होगी।