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तुम्हें तो भगवान् बनने की जल्दी थी / संजय तिवारी

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एकमात्र पलायन की इच्छा
उसी की
शिक्षा? दीक्षा और भिक्षा
नहीं हुई कोई परीक्षा
न शिक्षा का स्वाभिमान
न दीक्षा का कोइ ज्ञान
न भिक्षा का अभिमान
फिर भी भिक्षु कहलाये
घूमे या मन बहलाये
खुद को घोषित कर दिया ग्यानी
एक भगोड़ा राजकुमार
था बड़ा अभिमानी
न सृष्टि को जान पाया
न सृष्टि के दर्शन का ही ज्ञान पाया
खुद का करा कर स्वागत
कैसे बन गया तथागत
न राजा की मर्यादा का भान
न ही प्रजा के सुख दुःख का ज्ञान
कुलधर्म से अनजान
पुत्र? पति और पिता
नहीं कोई चिंता
सिद्धार्थ से बुद्ध कहाने लगे
अनजाने ज्ञान की गंगा बहाने लगे
न ज्ञान का भान
न ही गंगा जैसी किसी संज्ञा का ज्ञान
सृजन के प्रत्येक रहस्य से अनजान
आखिर किसे पाना चाहते थे
कौन सी संगीत सीख कर
क्या गाना चाहते थे
न कोई स्वर
न ही कोई गान
जो हासिल किया
उसका नहीं कोई प्रमाण
धर्म का चक्र
चक्र का धर्म
कही नहीं जीवन का मर्म
काश
जीवन के मर्म को जान पाते
तुम सच में
ग्यानी बन जाते
लेकिन तुम्हें तो
गाना था पलायन का गान
पलायन में ही दिख रही थी शान
नहीं जान पाए
जीने के लिए बना है यह संसार
नहीं समझ सके सृजन का सार
मेरे हाथो में
तुम्हारे दाम्पत्य की हल्दी थी
लेकिन तुम्हें तो
भगवान् बनने की जल्दी थी
तुम्हरे भगवान बनने की यात्रा का भार तोल रही हूँ
हाँ! मैं यशोधरा ही बोल रही हूँ।