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तुम्हे कुछ इस तरह वापस बुलाना है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हे कुछ इस तरह वापस बुलाना है
चमकते चाँद को धरती पे लाना है
शिकायत किसलिये हो खार से साथी
कि उनका काम बस नश्तर चुभाना है
न आँखें नम रहे हँसना जरा खुल कर
बचा जीने का अब यह ही बहाना है
जली जो हर तरफ है आग नफरत की
उसे उल्फ़त के पानी से बुझाना है
बड़ी दुस्तर नदी है जिंदगानी की
हमे भी रेत पर कश्ती चलाना है
नहीं कोई किसी का साथ दे पाता
हमें खुद आज अपने पास आना है
घिरा हर सिम्त ही बेहद अँधेरा है
हमें तारीकियों से पार जाना है
कड़कतीं बिजलियाँ हैं आशियाने पर
हमें तूफ़ान से रिश्ता निभाना है
हुआ मुश्किल बहुत जीना ज़माने में
बचा शमशान ही अब तो ठिकाना है