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तुम अब भी कर सकते हो प्रेम / लीलाधर मंडलोई

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आऊंगा जरूर एक दिन जैसे इतिहास की कोख से लौटता है समय
ले चलूंगा तुम्‍हें पहाडियों की सिम्‍त और
तुम पाओगे नदी बह रही है अक्षत

रास्‍ता पार कराऊंगा चट्टानों के नुकीले अनुभव से
और तुम्‍हें लगेगा तेज पांव चल सकते हो

लगातार मृत होते शब्‍दों तक चलकर तुम्‍हें लगेगा
हो सकते हैं अभी वे जीवित

किसी अखबार के पन्‍नों में दम तोड़ने के पहले
वे हो सकते हैं कविता में पुनर्जीवित

मैं तुम्‍हें प्रेम करूंगा और तुम जान सकोगे हस्‍बमामूल है सब
लौटा लाऊंगा किसी जुगत और
अचरज होगा तुम्‍हें, तुम अब भी कर सकते हो प्रेम