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तुम आज लिख लो / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
तुम आज लिख लो —
कि थोड़े दिनों में
हज़ारों युगों की
पुरानी, सड़ी
दासता की इमारत बड़ी
भूमि पर लोटती
भग्न बिखरी मिलेगी !
अनेकों बरस से
ग़रीबों, किसानों
मजूरों व श्रमिकों के
ताजे़ रुधिर से
सनी वाटिका
पूर्ण उजड़ी मिलेगी !
दमन के धुएँ से
नयी आग बन कर
गगन में लहरती दिखेगी !
कि जिससे
लुटेरों के डेरे मिटेंगे,
व जिनकी सबेरे-सबेरे
हवा में बुझी राख उड़ती दिखेगी !