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तुम और मैं / आभा पूर्वे

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हम दोनों
एक ही धार के
बीच खड़े हैं
लेकिन कितनी विषमता है
हम दोनों में
कि तुम
धारा के तीव्र प्रवाह में
बह जाते हो
और मैं
उसी धार पर खड़ी
इसकी थाह पाने में
व्याकुल रहती हूँ ।