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तुम गये झकझोर / हरिवंशराय बच्चन

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तुम गये झकझोर!

कर उठे तरु-पत्र मरमर,
कर उठा कांतार हरहर,
हिल उठा गिरि, गिरि शिलाएँ कर उठीं रव घोर!
तुम गये झकझोर!

डगमगाई भूमि पथ पर,
फट गई छाती दरककर,
शब्द कर्कश छा गया इस छोर से उस छोर!
तुम गये झकझोर!

हिल उठा कवि का हृदय भी,
सामने आई प्रलय भी,
किंतु उसके कंठ में था गीतमय कलरोर!
तुम गये झकझोर!