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तुम जो आए, आ गए हैं प्राण तन में / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
तुम जो आए, आ गए हैं प्राण तन में
आज दिन में ही दिखा है चाँद घन में।
लग रहा है आज मेरी देह में क्यों
चाँदनी की एक यमुना बह रही हो
‘लौट आओ ओ पथिक तुम नाव मोड़ो’
तीर पर कोई खड़ी यह कह रही हो।
सुन के ये सन्देश, नाविक दूर लहरों पर
लौट आया हो पलट कर एक क्षण में।
तुमको पा कर कैसी हलचल आज मन में
प्राण बरबस सिहरते हैं गुदगुदी लगती
ये तुम्हारे साथ के क्षण बीतते न
या क्षणों को बीतने में इक सदी लगती।
तुम मिले तो कूक उट्ठी कोयलें सौ
एक संग ही मन के इस अमराई-वन में।
कौन हो तुम प्रेम का बन्धन बढ़ाए
चेतना की धार आसव बन गई है
और इक-इक नस नशे में झूमती-सी
व्योम के माथे पे जाके तन गई है।
दाह भी, खुशबू भी है, ऐसी ये हालत
लग गई है आग भीषण जैसे चन्दन में।