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तुम झोंपड़ी बनाओ यहाँ देख भालकर / ज्ञान प्रकाश विवेक

तुम झोंपड़ी बनाओ यहाँ देख-भाल कर
गुज़रेंगे लोग आग की लपटें उछाल कर

संवेदना विहीन इस बस्ती में हर कोई
आता है भाप बेचने आँसू उबाल कर

ख़ुश हो रहे थे बालकों की की तरह सब बड़े
काग़ज़ की एक नाव को पानी में डाल कर

मरहम की कर तलाश अपने घाव के लिए
जो लग गई है चोट न उसका मलाल कर

उस ज़िन्दगी ने तोड़ दिया आइना मेरा
रक्खा था जिसके अक्स को मैंने सम्हाल कर