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तुम दूर गगन से सुन लोगे / सुमित्रा कुमारी सिन्हा

तुम दूर गगन से सुन लोगे, मैं गीत धरा पर गाती हूँ ।


ज्यों गाती रहती रात और

स्वर धरती पर घिर आते हैं,

ज्यों गाती रहती भूमि और

स्वर मेघों पर तिर आते हैं ।

त्योहीं तुम ज्योति निरख हँस दो, मैं आँसू-दीप जलाती हूँ ।


ज्यों गाती रहती है सरिता,

स्वर सागर में मिल जाते हैं,

ज्यों गाती रहती पवन,साँस में

स्वर आ घुल मिल जाते हैं ।

त्योंही सपना बन जाने को में सत्य जगत में आती हूँ ।