तुम दूर गगन से सुन लोगे, मैं गीत धरा पर गाती हूँ ।
ज्यों गाती रहती रात और
स्वर धरती पर घिर आते हैं,
ज्यों गाती रहती भूमि और
स्वर मेघों पर तिर आते हैं ।
त्योहीं तुम ज्योति निरख हँस दो, मैं आँसू-दीप जलाती हूँ ।
ज्यों गाती रहती है सरिता,
स्वर सागर में मिल जाते हैं,
ज्यों गाती रहती पवन,साँस में
स्वर आ घुल मिल जाते हैं ।
त्योंही सपना बन जाने को में सत्य जगत में आती हूँ ।