भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम ने क्या चाहा होता / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
क्या चाहता हूँ मैं अपने लिए-
तुम्हें या तुम्हारी याद को ?
विधाता ने मुझ से पूछा।
मैं तब से तदद्दुद में हूँ
सोचता हुआ-
तुम ने क्या चाहा होता ?
या कि मुँह बिचका कर
हतप्रभ कर दिया होता
उस बूढ़े और कृपण विधाता को !
(1987)