क्या चाहता हूँ मैं अपने लिए-
तुम्हें या तुम्हारी याद को ?
विधाता ने मुझ से पूछा।
मैं तब से तदद्दुद में हूँ
सोचता हुआ-
तुम ने क्या चाहा होता ?
या कि मुँह बिचका कर
हतप्रभ कर दिया होता
उस बूढ़े और कृपण विधाता को !
(1987)
क्या चाहता हूँ मैं अपने लिए-
तुम्हें या तुम्हारी याद को ?
विधाता ने मुझ से पूछा।
मैं तब से तदद्दुद में हूँ
सोचता हुआ-
तुम ने क्या चाहा होता ?
या कि मुँह बिचका कर
हतप्रभ कर दिया होता
उस बूढ़े और कृपण विधाता को !
(1987)