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तुम पडी हो... / केदारनाथ अग्रवाल
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तुम पड़ी हो शान्त सम्मुख
स्वप्नदेही दीप्त यमुना
- बाँसुरी का गीत जैसे पाँखुरी पर
पौ फटे की चेतना जैसे क्षितिज पर
मैं तुम्हें अवलोकता हूँ ।