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तुम पूछोगे तो मैं अपने मन की बात बता ही दूँगा / बलबीर सिंह 'रंग'

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तुम पूछोगे तो मैं अपने मन की बात बता ही दूँगा।

संभव है मैं बता न पाऊँ सबके मन की सब-सब बातें,
सब तो नहीं बिता पाते हैं अनहोनी बातों में रातें,
मैं संध्याओं से खेला हूँ किन्तु प्रभात बता ही दूँगा,
तुम पूछोगे तो मैं अपने मन की बात बता ही दूँगा।

शशि को छल तम ने दुख सहकर निशि की सुख-साधो को पाला,
रवि को क्षमा शक्ति पर निशि ने तप के अपराधों को पाला,
पतझर से परिचय है मेरा पर बरसात बता ही दूँगा।
तुम पूछोगे तो मैं अपने मन की बात बता ही दूँगा।

जब परहित चिन्तक भावों की कर दूँगा आरम्भ कहानी,
तब बेसुध हो रुक सकती है मेरी प्रतिभा मेरी वाणी,
पर कलुषित इच्छाओं का अनुचित उत्पाल बता ही दूँगा।
तुम पूछोगे तो मैं अपने मन की बात बता ही दूँगा।

नभ से नाता तोड़ चाँदनी करती भू पर नृत्य मनोहर,
चतुर चाँद बहला लेता है नभ को यह आश्वासन देकर,
तुम सो जाओ जाग रहा हूँ उल्कापात बता ही दूँगा।
तुम पूछोगे तो मैं अपने मन की बात बता ही दूँगा।