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तुम पे मरता हूँ इतना भी नहीं / तारा सिंह
Kavita Kosh से
तुम पे मरता हूँ इतना भी नहीं
कि तुम बिन जी न सकूँ
मौजे-खूं1 सर से उतर जाये
तो खूने जिगर पी न सकूँ
समंदर से मिले तुम, मुझको सनम
अपनी प्यास बुझा भी न सकूँ
यह किस्सा कहने के काबिल नहीं
मगर बिन कहे रह भी न सकूँ
तुमको अच्छा कहा जिस-जिसने,उनकी
खैर, तुम्हारी खैर मैं मना भी न सकूँ
तुमको बद-अहद2 वो बेवफ़ा कहूँ या
नहीं, सोचता हूँ, तो सोच भी न सकूँ
1. रक्त की तरंग 2. दगाबाज