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तुम बिन सूखी आस / सोना श्री

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तुम बिन सूखी आस अब, नयन बहाते नीर।
सजन ! गए क्यों छोड़कर, देकर मन को पीर।।
देकर मन को पीर, हृदय यह कर तुम घायल ।
चुप हैं बाजूबंद, छनकना भूली पायल ।
'सोना' करती याद, बीतते पल-पल गिन-गिन ।
पोर-पोर निष्प्राण, हुए हैं मेरे तुम बिन ।।