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तुम भी आओ / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अपने को खतरनाक
घोषित करते हुए
नारे उछालना
मैंने नहीं सीखा
मैंने नहीं सीखा
यूक्लिप्टस का पेड़ हो जाना
जब जंगल के अन्य सारे पेड़
नीम और बबूल बन
महामारी का विरोध कर रहे हों
मैं नदी नहीं हो सका
बढ़ी हुई-चढ़ी हुई / आवेग में-उन्माद में
प्रलय बन खड़ी हुई
तालाब बना रहा / या फिर झील
ठण्डी-गर्म रातों को
मैंने पहाड़ बनने की भी
कोई कोशिश नहीं की
कठिन था मेरे लिए
सूरज को रोज़-रोज़ डूबते देखना
और फिर सारी रात
सुबह की प्रतीक्षा करते रहना
आकाश टटोलते हुए
मैं ज़मीन बना रहा
नीम और बबूल उगाता रहा
तालाब और झील के पानी को
उबालता रहा
सूरज बनाता रहा अपने ही बीच
निरन्तर रोशनी के लिए
आओ
तुम भी
ज़मीन बन जाओ