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तुम भी देते हो तोल तोल / माखनलाल चतुर्वेदी

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तुम भी देते हो तोल-तोल!
नभ से बजली की वह पछाड़,
फिर बूँदें बनना गोल-गोल,
नभ-पति की भारी चकाचौंध,
उस पर बूँदों का मोल-तोल,
बूँदों में विधि के मिला बोल।
तुम भी देते हो तोल-तोल!
भू पर हरितीमा का उभार,
उस पर किसान की काट-छाँट,
हिरनों की उसमें रेल-पेल,
मर्कट-दल की कविता-कुलाँट,
बादल, छवि देते ढोल-ढोल।
तुम भी देते हो तोल-तोल!
टहनी बाहों-सी झूली हो,
हो हवा, किन्तु पथ-भूली हो,
चिडियाँ पंखों से झलती हों,
आँधियाँ कठोर मचलती हों,
मीठे में कड़ुवा घोल-घोल।
तुम भी देते हो तोल-तोल!

रचनाकाल: खण्डवा-१९४४