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तुम भी मेरी ही तरह यार दिवाने निकले / अमरेन्द्र

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तुम भी मेरी ही तरह यार दिवाने निकले
शहर में किसको ये गजलें हो सुनाने निकले

जब भी हम घर में लगी आग बुझाने निकले
उसने अफवाह उड़ाई कि जलाने निकले

जख्म अपना जो किसी से भी मिलाने निकले
सबके इक जैसे ही, इक तरह फिसाने निकले

चिट्ठियाँ लिख के खबर घर की पूछ लेते हैं
बच्चे बूढ़ों से बड़े तेज-सयाने निकले

यादें माजी की जिन्हें दफन मैं कर आया था
जेहन में आज उभर कर ये रुलाने निकले

जब तुम्हें भूलने का रास्ता खोजा मैंने
याद करने को तुम्हें सौ-सौ बहाने निकले

तुमने अमरेन्द्र को घर से जो निकाला, तो क्या
उसके रहने के दिलों में सौ ठिकाने निकले।