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तुम मधुर एक कल्पना से / गीता पंडित

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तुम मधुर एक कल्पना से,
संग मेरे चल रहे
अब विरह के गीत गाने
कोई पल ना आयेगा
मन के मधुबन में ओ मीते !
प्रेम फिर से गायेगा
रच रहे हैं गीत सुर सरगम में
पल ये ढल रहे

खोल दो सब बंद द्वारे
मीत अंतर में पधारे
दीप अर्चन आरती बन
मन स्वयं को आज वारे
देख संध्या में सुनहरी
भाव कैसे पल रहे

मोहनी मूरत है कैसी
डोरी बन खींचे मना
एक तुम्हारे प्रेम से ही
मन मेरा मंदिर बना
शब्द तुमसे ही चले थे
अर्थ तुम संग चल रहे