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तुम मुझे रात-दिन अब सताने लगे / कैलाश झा 'किंकर'
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तुम मुझे रात-दिन अब सताने लगे
झील के हर कमल झिलमिलाने लगे।
तेरी नज़रों ने जादू किया इस क़दर
हर जवां इश्क़ सपने सजाने लगे।
सुर्ख ओठों पर तेरे हँसी देखकर
मनचलों के क़दम डगमगाने लगे।
एक रूठी हुई तुम ग़ज़ल हो सनम
आ भी जाओ तुझे हम मनाने लगे।
तेरे आँचल में लाखों सितारे जड़े
चाँद के संग चमन गुनगुनाने लगे।