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तुम याद आते रहे / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
जीवन के हर रण में
तुम याद आते रहे कृष्ण!
मन का अभिमन्यु
जब-जब भी षड्यंत्रकारी
शक्तियों से घिरता
तुम अपने दिपदिप स्वरूप
से उसे आश्वस्त करते श्रीकृष्ण!
तुम्हारी अंगुलि पर घूमता
सुदर्शन चक्र
उसे चक्रव्यूहों को
भेदकर आगे बढ़ने
को तत्पर करता
घबरा कर रण छोड़ते
मेरी आस्था के अर्जुन
को ओज से भर कर
फिर तुम रणक्षेत्र में
सन्नद कर देते-माधव!
कर्त्तव्य पथ पर
अग्रसर कर देते कृष्ण!
अनजाने ही मेरा
जीवन कृष्णमय हो उठा
राधा नहीं
कोई गोपी नहीं
मीरा बन गई मैं
तुम नचाते रहे
मैं नाचती रही कृष्ण!
रसप्लावित हो मदमस्त
गाती रही। यह मेरा सौभाग्य था
कि मैंने तुम्हारा और तुमने मेरा
दामन कभी न छोड़ा।