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तुम हो तो ये घर लगता है / विज्ञान व्रत
Kavita Kosh से
तुम हो तो ये घर लगता है
वरना इसमें डर लगता है
कुछ भी नज़र ना आए मुझको
आईना पत्थर लगता है
उसका मुझसे यूँ बतियाना
सच कहता हूँ डर लगता है
जो ऊँचा सर होता है ना
इक दिन धरती पर लगता है
चमक रहे हैं रेत के ज़र्रे
प्यासों को सागर लगता है