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तुम हो तो ये भी है / अर्चना अर्चन

कभी सोचा नहीं यूं तो
न तुम होते तो क्या होता
मगर इतना तो तय है कि
दर्द का सिलसिला होता

न खिलती धूप आंगन में
न मौसम ही हरे होते
न मुठ्ठी में मोहब्बत की
उजाले ही भरे होते
न आंखों के समंदर में
ख्वाबों का काफिला होता

भला कैसे बताओ तो
चांद से बारिशें होतीं
हरी चादर में दुर्वा की
टपकते ओस के मोती
धरा प्यासी ही रह जाती
लबों पर बस गिला होता

जश्न के बाद जैसे
हर तरफ फैले हों सन्नाटे
कि जैसे रात अपना दिन
बिरह की आग में काटे
न बगिया में उम्मीदों की
कोई भी गुल खिला होता

सुनो, तुम हो तो महकी हैं
मेरी सुबहें मेरी शामें
तेरी ना में कयामत है
जिंदगी है तेरी हाँ में
ना दिल में धड़कनें होतीं
जो तुमसे फासला होता