तुम (जीवन दर्शन)
 
तुम प्रकाश हो, 
मुझमें दुख का तिमिर भरा है 
तुम मधु की शोभा हो, 
मुझमें कुछ न हरा है। 
तुम आशा की वाणी, 
मैं निराश जीवन हूं 
तुम हो छटा हँसी की, 
मैं नीरव रोदन हूँ। 
तुम सुख हो, 
मेरे दुख का सागर गहरा है। 
मुझे मिलो हे! 
त्ुाममें मधुर प्रकाश भरा है।
( तुम कविता का अंश)