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तुम / नाज़िम हिक़मत
Kavita Kosh से
तुम मेरी ग़ुलामी हो और हो मेरी आज़ादी
शुरू गर्मी की रात में मेरा जला हुआ गोश्त हो
मेरे देश हो तुम ।
हरे बादाम सी हरी आँखों में
रेशमी हरापन हो
तुम विशाल हो,
ख़ूबसूरत हो, विजयी हो ।
तुम मेरा दुख हो,
जिसे अभी महसूस नहीं किया था मैंने
जिसे महसूस कर रहा हूँ मैं
ज़्यादा से ज़्यादा ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय