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तुलना / निरुपमा सिन्हा
Kavita Kosh से
निर्बाध बहती
अपने लक्ष्य को
साधती
किसी बंधन को
नहीं मानती
कभी धीमी
कभी तेज़
छलक कर
छलका कर
अपनी चंचलता से
भिगो जाती
बिना
यह सोचे कि
बुरा लगेगा
या भला
स्वीकारती है
जीवन की खुशियों को
आमन्त्रण
पा सागर का
दौड़ जाती
अबाध!!
मैं नदी
खुश नहीं हूँ
यह जानकर
कि
मेरी तुलना की जाती है
स्त्री से!!