तुलसीदास / पढ़ीस
कबि आहिन तुलसीदास,
रमय्या राम के।
तुम सुंदर सीता - राम,
सलोने नाम के।
सुर-गंगा जसि बहयि कल्पन
भाउ-भँवर की धार,
डारि दिह्यन कविता की डोंगिया
रामु लगावयि पार।
रमय्या राम के।
दस दुआर सुंदर मनि-मंदिरू
कनक - चउतरा माँझ-
सीता सहित रामजी राजयिं,
जहाँ न दुपहर - साँझ।
रमय्या राम के।
जनक - नगर की फुलवारी माँ
फूलि - फलीं जगदम्ब;
जगत - पिता साकेत धाम
आए न कीन्ह ब्यिलम्ब<ref>बिलम्ब, देर</ref> ।
रमय्या राम के।
कपटिनि कयिसि केकयी रानी
राजा - मति हरि लीन,
संुदर पूतु - पत्वाह<ref>पुत्र-पुत्रवधू</ref> किहिस
बनबासु हीनि दुख दीनि।
रमय्या राम के।
सुबरन रेखा <ref>स्वर्ण-रेखा, सोने की लाइन</ref> मिरगा माया
सिया हिया छलु लीन,
दबका<ref>छिपा हुआ</ref> रहइ दसाननु दउरा<ref>दौड़ा आया</ref>
जनक-सुता हरि लीन।
रमय्या राम के।
किसकिंधा सुगरींव मितायी,
पवन - पूतु सत संग;
सीता खातिन सैना साजिनि
फरकि उठे सुभ अंग-
रमय्या राम के।
भरा अबूहु<ref>अथाह, अगम्य</ref> महासागरू फिरि
सूझयि वार न छ्वार
महाबीर अगुआ की पल्टनि
सेतु बाँधि भयि पार।
रमय्या राम के।
मेघनादु जस जिहि का लरिका-
कुंभकरन अस भाइ,
रहा रावना जोधा<ref>योद्वा</ref> जूझा <ref>जूझना</ref>
अयिंस्यन रामु रजायि<ref>रजामन्दी, मर्जी, इच्छा</ref>।
रमय्या राम के।
सीता जीति रामु जी लाये
जब सतयें सोपान;
जागि उठा जगु जगमग-जगमग,
भूला अपन-ब्यिरान<ref>अपना-पराया</ref>।
रमय्या राम के।
सीता सकती<ref>शक्ति</ref> रहयिं राम की,
मुलु जग - जलनी नारि;
तिहिंते गयी समायि अगिनि माँ
सुंन्दरि बही बयारि।
रमय्या राम के।