भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुलसी के बिरवे ने तेरी /राणा प्रताप सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुलसी के बिरवे ने तेरी
याद दिलाई है
सर्दी नहीं लगी थी फिर भी
खांसी आई है


खड़े खड़े सब देख रहा है
मन भौंचक्के
अक्स ज़ेहन से चुरा ले गए
ख़्वाब उचक्के
शोर मचाती भाग रही
कोरी तनहाई है


बंद हुआ कमरे में दिन
सिटकिनी लगा के
आदत से मज़बूर छुप गई
रात लजा के
चन्दा सूरज ने इनको
आवाज़ लगाईं है


घर का कोना कोना अब तक
बिखरा बिखरा है
गलियों में भी एक अदद
सन्नाटा पसरा है
लगता अभी अभी लौटा
कोई दंगाई है