तुलसी में / हरेराम बाजपेयी 'आश'
तुलसी पर्याय है भावना और पवित्रता का
तुलसी पर्याय है अनेकता में एकता का।
तुलसी में समाहित है कवि की सब विधाएँ,
क्या नहीं है तुलसी में, अंश मात्र हम बताएँ
तुलसी दोहा है, सोरठा है छन्द और चोपाई है
तुलसी कविता है गीत है ग़ज़ल और रुबाई है
तुलसी में भारद्वाज वाल्मीकि कालिदास और कबीरा है
तुलसी में सुर रहीम और कृष्णमयी मीरा है।
तुलसी उपमेय है, तुलसी ही उपमान है
तुलसी है अलंकार हिन्दी का सम्मान है,
तुलसी में भ्रातृत्व है भरत का साथ है लखन जैसा,
भेद है विभीषण का, विश्वास है बालितनय जैसा
तुलसी है मेघनाद तो तुलसी ही है शान्त तपोवन
तुलसी है अरण्य तो तुलसी ही है मिथिला उपवन।
तुलसी में अमित अयोध्या है, सरयू है सुकर्मों की,
रावण की स्वर्णमयी लंका, प्रतीक है दुष्कर्मों की।
तुलसी है जामवन्त, तुलसी ही हनुमान है
तुलसी ने सिखाया है भक्ति रस प्रधान है
तुलसी ही भक्त है, तुलसी ही भगवान है,
राम में बसा है तुलसी, तुलसी में राम है॥