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तूं मन समझा ले हो योगी क्यूं चाल पड़ा मुंह फेर कै / मेहर सिंह

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तूं मन समझा ले हो योगी क्यूं चाल पड़ा मुंह फेर कै।टेक

दूजे के मन की बात समझ के बोल तै सुहाणी चाहिए,
तेरे कैसे राजा धौरै मेरे केसी राणी चाहिए
आत्मा प्रसन्न होज्या इसी मीठी बाणी चाहिए
तूं खड़ा उदास बोलता कोन्या क्यूंकर के ढंग करया सै,
संसार तै तालुक तोड़ै के जीवंता ए मर रहा सै,
ज्ञान तै त्रिया में भी हो सै तू कित ऋषियां मैं फिर रहा सै,
धरूं ताता पाणी न्हा ले हो योगी मैं बटणा मलूं तुझ शेर कै।1।

आत्मा नै आत्मा के पास रहे तै ज्ञान हो सै,
उनकी हार हुया ना करती जिन का सच्चा ध्यान हो सै,
गलती भी हो जाया करै यो बोलता बेईमान हो सै,
मैं कोढ़ाने की कह री सूं कुछ तेरी समझ मैं आवंता ना,
तेरे मुंह की तरफ लखाऊं तू कुछ भी बतांवता ना,
बेरा ना के सोच रहा सै पलक तलक भी ठांवता ना,
एकबै मेरी तरफ लखा ले हो योगी मैं खड़ी हुई आगा घेर कै।2।

तड़फती नै छोड़ ज्यागा बाबा जी तनै पाप होगा,
भजन तेरा बणै नहीं खंड तेरा जाप होगा,
तीन जन्म मैं भी कष्ट मिटै ना इसा मेरा शराप होगा,
इष्ट की दया तै मैं भी भगतणी भगवान की सूं,
उसी कुसी जाणिंए ना सच्चे पुरे ध्यान की सूं,
जती सती का जोड़ा हो सै तेरे ही मिजान की सूं,
अपणे पास बिठा ले हो योगी क्यूं चाल पड़या मनै गेर कै।3।

तेरे दर्शन करकै नै जिया मेरा प्रसन्न होता,
चाल्या भी जाता तूं जै म्हारा तेरा ना दर्शन होता,
वसुदेव देवकी बिन पैदा कैसे कृष्ण होता,
बीर मर्द सै चलै सृष्टि यो ईश्वर का असूल सै,
बाबा जी तू ब्याह करवाले या तेरै मोटी भूल सै,
मेहर सिंह तै बूझ आईए जा बरोने में स्कूल सै,
हित से छाती कै लाले हो योगी क्यूं चाल पड़या मुंह फेर कै।4।