भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ / शकेब जलाली
Kavita Kosh से
तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ
आँखों को अब न ढाँप मुझे डूबता भी देख