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तूने हाय मेरे जख़्म-ए-जिगर को छू लिया / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
तूने हो तूने मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर को छू लिया
दूर हूँ मैं तेरी दुनिया से
क्यूँ छुआ दामन मेरा
तूने हाय मेरे ...
मैं प्यार की चाँदनी रात हूँ
उलझी हुई दर्द की बात हूँ
तूने हाय मेरे ...
सूना था घर कोई रहने लगा
डर के मगर दिल ये कहने लगा
तूने हाय मेरे ...