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तू-फू को : बारह सौ वर्ष बाद / अज्ञेय
Kavita Kosh से
पुराने कवि को
मुहरें मिलती थीं
या जायदाद मनचाही
या झोंपड़ी के आगे राजा का हाथी बँधवाने का
सन्दिग्ध गौरव,
या यश,
प्रशंसा,
दो बीड़े पान,
कंकण, मुरैठा,
वाहवाही।
या जिसे कुछ नहीं मिलता था
उस की सान्त्वना थी
बहुत-सी सन्तान
भरा-पुरा खानदान
हम तुम, दोस्त, नये कवि बेचारे :
प्रजातन्त्र में पाते हैं
प्रजापत्य विरोधी नारे :
दो या तीन बच्चे बस!
यह कि हम ने ईजाद किया
यही एक नया रस?
ग्वालियर, 15 अगस्त, 1968
तू-फू, चीनी कवि, सन् 713-790