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तू एक बार मेरे इश्क से रु-ब-रु हो जा / शमशाद इलाही अंसारी
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तू एक बार मेरे इश्क से रु-ब-रु हो जा,
फ़िर ये साँस चले चले, ना चले ना सही|
तू है अगर मुझमें और मुझसे बाहर सब जगह,
फ़िर ये मेरा सर झुके झुके, ना झुके ना सही|
पीता रहूँ शराब तेरे नाम की मैं उम्र भर,
ये सिलसिला अब रुके रुके, ना रुके ना सही|
तेरी हर साँस मेरी रुह पर कर्ज़ है हमदम,
कोई इस बोझ में दबे दबे, ना दबे ना सही|
मेरी दीवानगी मेरे इश्क का सबब है "शम्स"
ये दुनिया मुझ पर हँसे हँसे, ना हँसे ना सही|
रचनाकाल : 08.11.2002