भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू जहाँ तक कहे उम्मीद वहाँ तक रक्खूँ / आलोक श्रीवास्तव-१
Kavita Kosh से
तू जहाँ तक कहे उम्मीद वहाँ तक रक्खूँ,
पर, हवाओं पे घरौंदे मैं कहाँ तक रक्खूँ ।
दिल की वादी से ख़िज़ाओं का अजब रिश्ता है,
फूल ताज़ा तेरी यादों के कहाँ तक रक्खूँ ।