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तू जहाँ तक कहे उम्मीद वहाँ तक रक्खूँ / आलोक श्रीवास्तव-१

तू जहाँ तक कहे उम्मीद वहाँ तक रक्खूँ,
पर, हवाओं पे घरौंदे मैं कहाँ तक रक्खूँ ।

दिल की वादी से ख़िज़ाओं का अजब रिश्ता है,
फूल ताज़ा तेरी यादों के कहाँ तक रक्खूँ ।