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तू दिखा दे आज मुझको रूप अपना खोलकर / कमलकांत सक्सेना

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तू दिखा दे आज मुझको रूप अपना खोलकर।
और ले सर्वस्व मेरा दो मिनिट हंस बोलकर।

फिर घटा न श्याम होगी खिलखिलाएगा न मौसम
गीत दे-दे धड़कनों में, सांस अपनी घोलकर।

सूर्य को यह पता है जल रही है चांदनी
है गगन भी तप रहा बरसात तू अनमोल कर।

छोड़कर मन का किनारा चुगलियाँ खाएँ लहर
तू न देना कान सागर प्यार के वश डोलकर।

फूल कांटों में उलझ कर रह गये वरना कभी
फूल ही वरदान होते गन्ध के भूगोल पर।

काँपतीं अभिव्यक्तियाँ, लेखनी भयभीत है क्यों?
क्यों हुई सरकार बंधक वोट के भूगोल पर?